Saturday, September 4, 2010

सोने की बालियाँ

सोने की बालियाँ "चुनिया... . एक गिलास दूध ला" चिल्लाते हुए अभी अभी आये सुखराम ने कहा और खाट  को बिछाकर अपने माथे पर बंधे तौलिये  को खोला और फिर उससे खाट को झाड़कर बैठ गया.
चुनिया की माँ सब्बो उसकी आवाज सुनकर चूल्हे पर चढ़े दूध को एक गिलास में ढ़ालकर आँचल से  गिलास को पकडे बाहर निकली. उसने गिलास सुखराम को थमा दिया. सुखराम ने पहले खाली हाथ से फिर अपने तौलिये से पकड़कर गिलास को हाथों में ले लिया. सब्बो भी वहीँ बैठ गयी.
सुखराम बोला, आज हम बहोत खुश हैं . देखं न अबरी फसल कि शान से खेतवा में लहराय रहे है. अबरी सोचे हियों कि चुनिया के लगन कर दे जाई. आखिर कब तक ओकरा घर में बैठाय के रख्वो. भगवन री किरपा से अबरी भरपूर फसल भेलै हैय. फसल कटते ही समधी जी के चिट्ठी लिखवैय देभौं.
" जे भगवान री इच्छा" सब्बो के मुह से निकला.
चुनिया के माई हम्मैय सोचै रिहों कि अबरी महाजनों के आधा रकम चूका दी जाई. फसल बिकैय दा फेर एक दिन हटिया जाय के चुनिया और अपन लिए साड़ी-वाड़ी, शादी खातिर बक्सा - पिटारी, चूड़ी-लहटी सब इंतजाम कर लिहो. सुलभा मौसी के साथ लिए जैहो. सब खरीदाय देथौं.
"ठीके हैय " कहकर सब्बो उठकर अन्दर चली गयी.
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" ए हो रामेषर एक गिलास चाह पियावः" कहकर सुखराम बहार बेंच पर बैठ गया और सामने बैठे बंदी से बोला- का बंदिया कुछ दुनिया- जहाँ के खबर सुनावा. बंदी रेडियो से कान लगाये सुन रहा था. सुखराम की बात सुनकर रेडियो को बंद कर बोला - का सुनाएँ काका, खबर अच्छी नाय हैय . एगो कौन सेना - वेना हैय की जे कहिय है कि अबरी धन- कटनी न होवे दी जाई. जबकि एगो दुसर कहै हैय कि ऊ खेतान से धान काटी तो पहिलं कहिय हैय कि तो धान कटनी में खून की नदिया बह जाई.
" अरे उनकर बाप के राज हैन कि उनकर खेत बाडन कि खून की नदिया बहा दिही या धान काट लिय जाईं" रामदीन ग्वाला बीच में बोल पड़ा. "अरे कोये  कुछ गड़बड़ करी   तो कि सरकार खली टुकुर टुकुर देखि".
"कहैय  तो ठीकैय हौ तू रामदीन" कहकर सुखराम रामेषर के बेटे के हाथ से चाय लेकर पीने लगा.
फिर      इस बात को लेकर वहाँ कुछ देर बहस चलती रही.
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सुखराम महाजन के पास देहरी पर बैठा था. तभी पुलिस की एक गाड़ी सरसराती धूल उड़ाती सामने के कच्चे सड़क से गुजर गयी.सुखराम के माथे पर चिंता  हल्की की रेखाएँ उभर आयीं.
उसने महाजन से पूछा - का सेठ जी कुछो गड़बड़ के आशंका हैय कि?
महाजन ने कहा- भगवान जाने. और अपने धोती के एक किनारे से माथे का पसीना पोछने लगा.
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आखिर वही हुआ जिसका छोटा सा डर सुखराम के मन में समा गया था. एक दिन खबर मिली की कुछ लोग उसके खेत में फसल काट रहे हैं . वह दौड़ा खेतों की ओर, सभी अपने अपने घरों में छिप रहे थे. सुखराम के पहुँचते पहुँचते दूसरे दल के लोग भी पहुँच चुके थे और वे पहले दल पर गोलियाँ चलाने लगे. इधर से भी जवाब दिया गया. गोलियाँ चलते देख सुखराम के होश उड़ गए. वह थाने  की ओर दौड़ा. जमादार था. वह बोला- " अरे जा अपनी जान बचा क्या खेत के पीछे पड़ा है". सुखराम हताश हो लौट पड़ा.
इधर जब गोली बारी बढ़ गयी तो पहले दल ने खेत में  खड़े सुखी फसल में आग लगा दी. फसल खेत में धू-धू कर जलने लगी. दो घंटे तक विनाश लीला चलती रही. जब शांति हुई तो लोग धीरे-धीरे अपने-अपने खेतों की ओर अग्रसर हुए. कई लोगों के खेत में खड़ी फसल आग से प्रभावित हुई थी. सुखराम का लगभग पूरा खेत जल चुका था. एक कोने में धान के कुछ पौधे निश्चल खड़े थे. खेत राख से पटा था. बीच-बीच में एकाक पौधे खड़े थे.
और सुखराम मेड़ पर दोनों हाथों से माथा पकड़े बैठा था.उसकी नजरें वहाँ टिकी थी जहाँ खेत में खून के कुछ कतरे गिरे हुए थे और उनके पास ही धान की  कुछ सुनहली बालियाँ बिखरी पड़ी थीं.
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